, शिक्षक ,निष्ठा और विद्यार्थी

शिक्षक ,निष्ठा और विद्यार्थी

State Craft

  शब्द सब के जीवन के बेहत महत्वपूर्ण शब्द है। एक शिक्षक  बालक को शिक्षित करने में सक्षम है। पर शिक्षा का अर्थ केवल किताबी दुनिया को समझना और परीक्षा में उस समझी हुई किताबी दुनिया को काग़ज़ पर उतार देने तक  सीमित नहीं है। एक बालक जब पहली बार परिवार के दायरे से बाहर निकलकर पाठशाला में आता है, वह उस पाठशाला को अपने शिक्षक से  जोड़ता है। वह पाठशाला उसको उतनी ही पसंद आती है जितना उसे उसका शिक्षक पसंद आता है। किसी भी बहुत सुंदर इमारत, रंग बिरंगी दीवारों और ख़ूबसूरत किताबों में ऐसा कोई जादू नहीं है जिस की वजह से एक विद्यार्थी को उनसे प्यार हो जाए।यह सब एक अच्छे शिक्षक के बिना विद्यार्थी के लिए पहेली भर हैं।  तो मेरा ये मानना है कि हाँ हिमाचल में बहुत सारी पाठशालाओं में पूर्ण सुविधाएँ नहीं है। लेकिन  विद्यार्थियों के लिए सुविधा है की नहीं से ज़्यादा ज़रूरी है की वहाँ  शिक्षक है कि नहीं?  एक  समर्पित शिक्षक कम सुविधाओं में भी विद्यार्थियों का सौभाग्य बन सकता है । जब हम डॉक्टर ,पुलिस वाले और फ़ौजी से अपने हर मनोरंजन, हर सुविधा, हर अच्छे वक़्त को छोड़कर हमारे लिए हमेशा उपलब्ध रहने की आशा करते हैं तो  शिक्षक से यह उम्मीद करना गलत क्योँ है? हिमाचल एक ऐसा प्रांत है जहाँ पर भारी बर्फ़बारी, बादल फटना, हिमस्खलन होने की चेतावनी है हर साल जा रही होती है। यह लिखने का मक़सद यह है कि इस प्रांत में जीवनशैली आसान नहीं है।राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षक राज्य से ही है।इस लिए यह सभी जानते हैं कि हर जगह सुविधाओ की बराबरी करना या तुलना करना दोनों ही ग़लत है।हिमाचल प्रदेश के बिजली विभाग ,पानी विभाग और अन्य सारे विभाग मुश्किल स्थितियों में भी अपना कार्य पूरा करते हैं। यही उम्मीद वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजते वक़्त  शिक्षा विभाग से  भी करते हैं।ख़राब रस्ता, बर्फ़बारी , बारिश ,स्कूल में बच्चों का ज़्यादा होना या कम होना किसी शिक्षक को अपना कर्तव्य न करने का  बहाना नहीं बन सकता है। ज़िंदगी में मेहनत करना एक आदत है।यह आदत कच्ची उम्र में ही पढ़ती है।इस लिए विद्यार्थियों के बचपन को तराश कर देश का सुनहरा भविष्य बनाना शिक्षकों के हाथों मे है। हर विभाग में कमियां है।इन कमियों के रहते हुए भी राष्ट्र निर्माण के लिए सभी विभागों का एक जुट होकर चलते रहना बहुत ज़रूरी है। शिक्षा विभाग में अध्यापकों का स्थानान्तरण एक बहुत बड़ा विषय बन जाता है। कुछ किलोमीटर चलना ,कम सहूलियतों के साथ बच्चों को पढ़ाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है। यह व्यंगात्मक रवैया है। यह इसलिए कह रही हूँ क्योंकि हाल में और लगभग हमेशा से ये देखा जा रहा है कि संविदात्मक अध्यापक नियमित नौकरिया पाने के लिए कई बार हड़ताल करते हैं। उस वक़्त यह सभी अध्यापक यह माँग नहीं करते कि हमें घर के पास ही नौकरी दी जाए या हम केवल पूर्ण सहूलियतों  वाली पाठशाला में  ही काम करेंगे।नौकरी मिल जाने के बाद जब इन्हें ये सभी मुश्किलें नज़र आने लगती है तो मैं इसे शिक्षा विभाग से धोखा कहूंगी। आज भी राष्ट्रीय हाईवे के साथ लगते सरकारी स्कूलों में कक्षा आठवी में ऐसे विद्यार्थी मिल जाएंगे जिन्हें अक्षर पढ़ने में भी परेशानी आती है।गाँव में कई  सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति होने के बावजूद भी महीने के सारे दिन अध्यापक नहीं आते है। कई स्कूलों में यह भी देखा गया है कि अध्यापक अपने घर और बाहर का काम अपने विद्यार्थियों से करवाते हैं। विद्यार्थी कई दफ़ा अपने घर से अध्यापकों के लिए कई चीज़ें लेकर जाते हैं। हिमाचल में कुछ सरकारी स्कूल तो ऐसे हैं जहाँ पर अध्यापक केवल परीक्षा लेने जाते हैं। ऐसे स्कूलों में सभी विद्यार्थी पास हो जाते हैं क्योंकि अध्यापक उन्हें ब्लैक बोर्ड पर उतर लिखवाकर परीक्षा पास करवा देते हैं। अध्यापकों को दिए जाने वाली पॉच साल की बिना वेतन की छुट्टी का भी फ़ायदा कुछ अध्यापक ऐसे उठाते हैं कि शिक्षा विभाग से छुट्टी लेकर पाँच वर्ष के लिए जहाँ जाते हैं उस जगह कुछ समय के लिए नौकरी करके वेतन लेते रहते हैं। जब शिक्षक गण अपना संगठन लेकर हड़ताल के लिए आएँ तो वो निष्ठा से केवल  उन अध्यापकों की बात को सामने लाए जो नौकरी मिलने के बाद पूर्ण निष्ठा से अपना कार्य करते आए हैं या निष्ठा से अपना क्रय  निभाएंगे।  शिक्षा विभाग से जुड़ाने के लिए जब हड़ताल की जाती है और अपनी माँगे रखी जाती है।उस समय माँगो की सूची में यह ज़रूर लिखा जाना चाहिए की शिक्षक अपने कर्तव्य को समझते हैं और उसे निभाने का वादा करते हैं।यह भी अपने माँग पत्र के साथ लिखित रूप में लगाना बेहद ज़रूरी  किया जाना चाहिए । किसी भी देश प्रान्त और राज्य के बालक  जब युवा होते हैं। उनकी तरक़्क़ी में उनके शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान रहता है। इसलिए जब शिक्षक  हक़ से उठ कर अपने होशियार विद्यार्थी के नाम से अपना नाम जोड़ ता है तो उसका कर्तव्य बनता है कि जब उसका विद्यार्थी ज़िंदगी में ना सँभल पाएँ यार ज़िंदगी को ना समझ पाएँ तब भी उसके नाम से अपना नाम जोड़ना वह अपना कर्तव्य समझे।]]>

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