, ग़लतियां किसकी |गलती ढूंढने वाले की या गलती करके सीखने वाले की?

ग़लतियां किसकी |गलती ढूंढने वाले की या गलती करके सीखने वाले की?

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शालिनी ,चंदीगढ़

नमस्कार।कैसे हैं आप लोग?
कुछ दिनों से आपके आए हुए ईमेल और मैसेज पढ़ रही थी। मेरा ब्लॉग आप सभी के लिए है।इसमें कोई श़क नहीं। मैं चाहती हूँ कि आप सब लिखें।आप सब वह सब लिखे जो आप महसूस कर रहे हैं। लिखना अपने आप में चिंता निवारक है।
लेकिन एक बात है। हम बहुत सारे लोगों में राजनीति को लेकर बड़ा लगाव है।

मेरा लगाव लोगों के साथ है राजनीति के साथ नहीं। इसलिए आप मुझे माफ़ कीजियेगा ।क्योंकि मैं आपकी राजनीतिक सोच को ब्लॉग पर नहीं डाल पाऊँगी।
मेरी समझ से ये समय ऐसा है।जिसमें इंसानों को इंसानियत ही बचा पाएगी।
बहुत लोगों ने जो ईमेल की है। उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि हमें किसी इंसान की बात मानने से दिक़्क़त है। यह बात इंसान के ग़लत या सही होने से नहीं है। बात ये है कि हालात कया चल रहे हैं और हमें क्या करना चाहिए।
अगर हमें कुछ ऐसा पता है जो इस स्थिति को नियंत्रण में लाने में कारगर है।

तो हमें उसके बारे में बात करनी चाहिए।
लेकिन केवल क्योंकि किसी ने कोई बात कही है जिससे हमारा और सबका फ़ायदा हो सकता है । लेकिन वो इन्सान हमें पसंद नहीं। केवल इसलिए वो बात ग़लत है ।इसका समर्थन में नहीं करती।
अपनी सारी ऊर्जा अगर हम सिर्फ़ कमियां ढूंढने में लगा देंगे ।तो ज़िंदगी में जीना छोड़ देंगे।
ये मेरा मानना है ।आपकी सोच अलग हो सकती है।


लेकिन मैं किसी भी राजनीतिक दृष्टिकोण को इस ब्लॉग पर पब्लिश नहीं करुँगी।
दूसरी बात-आप हिंदी में लिखें चाहें आप अंग्रेज़ी में लिखे ।ये पूरी तरह आप पर निर्भर है। मैं न यहाँ पर आपको अंग्रेज़ी सिखाने के लिए हूँ । न ही हिंदी में लिखना। आप अगर हिन्दी को अंग्रेज़ी में लिखकर भेजेंगे। और मुझसे उम्मीद करेंगे कि मैं आपके लिए उसे दुबारा लिख दूँ ,तो माफ़ कीजिएगा में नहीं कर करूँगी। आप जिस भी भाषा का चयन कर रहे हैं ।कृपया कर उसी भाषा में लिखकर भेजें।

यह मंच किसी को भी सुधारने के लिए नहीं है।यह मंच एक एहसास का है ।जिससे आपके मन में क्या चल रहा है ।आप इस मुश्किल के समय में क्या महसूस करते हैं वो आप दूसरों तक पहुँचा सके।
कुछ लोगों की बातें मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ।आपको सरकारी तंत्र नपसंद है। आपको हमेशा लगा है कि सरकारी लोग काम नहीं करते।
परंतु ये समय तो ऐसा है जिसमें सरकारी तंत्र ने हीं आपकी और हमारी ज़िंदगी को संभाल रखा है। मेरी समझ से आपका ये कहना की इस समय भी सरकारी तंत्र काम नहीं कर रहा है। किसी भी तरह से ठीक नहीं है। या फिर ठीक से काम नहीं कर रहा है |यह एक बहुत बड़ा बयान हो जाएगा।

क्योंकि इस वक़्त आप या कोई और इस स्थिति में नहीं है कि भारत देश में जो कुछ हो रहा है| उसको चुटकी बजाते ही ठीक कर दे। आप कोशिश कीजिएगा और देखियेगा कि बहुत सारी अच्छी चीज़ें भि हो रही है।
अगर आप सफ़ाई कर्मचारियों को, डॉक्टरों को इस समय का हीरो कह रहे हैं।तो आपको सरकारी तंत्र से जुड़े हर एक इंसान को इस वक़्त का हीरो मानना ही होगा|यह देर रात तक काम कर और सुबह जल्दी उठकर दफ्तरों में ,आप लोगों के बीच ,आप लोगों की ज़िंदगी को चलते रखने में अपनी ज़िंदगी को दाव पे लगा रहा है।


भारत वर्ष एक विकासशील देशें है ।बहुत बड़ी आबादी वाला देश है। भारत वर्ष की मुश्किलें अलग है। जब आप घर बैठे किसी चीज़ का समाधान अपनी नज़र से सोच लेते हैं। उस वक़्त आप ये नहीं समझ पाते कि उस समाधान को लागू करने में दिक्कतें कितनी है।
आप अपने समाधान को मुश्किल का हिस्सा नहीं बना सकते हैं। और अगर आपको लगता है की आप का समाधान देश हित में उपयोगी है। तो मेरा मानना है कि आपको अपनी चिट्ठी मुझे नहीं देश के प्रधानमंत्री को लिखनी चाहिए।


मेरी बातें आपको बुरी लग सकती है। लेकिन अगर इस वक़्त आप ख़ुश रह कर अपनी ज़िंदगी को नहीं संभाल पा रहे| तो देश के लिए क्या ठीक है और भारत वर्ष के लिए क्या ठीक है। आपको घर बैठे ये सोच -सोच कर अपने दिमाग़ पर ज़ोर नहीं डालना चाहिए। भारत वर्ष के लिए भी आप तभी कुछ कर पाएंगे अगर इस वक़्त ख़ुद को संभाल पाए ।

ख़ुद को ख़ुश रख पाए और ख़ुद को महफ़ूज़ रख पाए।
इस मुश्किल के समय में खाने की दिक़्क़त आएगी। यह ही हक़ीक़त है। लेकिन यह न हो इसके लिए हमारे देश के बहुत सारे लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं। यह कोशिश ही समाधान है।
जो लोग ये बात लिखते हैं कि कोरोना वायरस से लड़ते हुए भुखमरी से बहुत लोग मर रहे हैं। उनसे मेरा एक सवाल है कि क्या आप अपने स्तर पर कुछ लोगों की मदद कर रहे हैं?
अगर आप मदद कर रहे हैं ।तो आपको यक़ीन रखना चाहिए कि आपके ही जैसे बहुत सारे लोग और भी इस मुहिम में जुड़ेंगे और बहुत सारे लोगों तक खाना पहुँचेगा। केवल उंगलियां उठने से इस वक़्त किसी का फ़ायदा नहीं होगा।
जहाँ तक किसी एक समाज को बुरा या फिर लापरवाह बोलने की बात है। यहाँ पर भी मैं आपको कहूंगी।यह वक़्त गलतियाँ निकालने का समय नहीं है। यह समय गलतियों को संभालने का और उन्हें सुधारने का है।

नफ़रत से नफ़रत ही बढ़ेगी।
यह बीमारी दुनिया को बदलने की क्षमता रखती है। लेकिन बदलाव तब आएगा, जब हर इंसान इसे महसूस करेगा। इसलिए मैं आपसे कहूँगी के इस समय किसी भी तरह की और किसी के लिए भी नफ़रत को छोड़ दें।
जब हम किसी के लिए नफ़रत में जीते हैं तो अपनी ज़िंदगी को ही जलाते हैं।
आपसे दुबारा कहूंगी कि आप अपने एहसासों को अपने शब्दों से रूप दे।लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि जो शक्ल अपने एहसास की आप बना रहे हैं क्या कुछ समय बाद उसको पढ़कर आप उससे ख़ुद को जोड़ पाएंगे?

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1 thought on “ग़लतियां किसकी |गलती ढूंढने वाले की या गलती करके सीखने वाले की?

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