, 2019 चुनाव  -युवा केंद्रबिंदु या मौक़े का शेर ?

2019 चुनाव -युवा केंद्रबिंदु या मौक़े का शेर ?

India

2019 के चुनावों की लहर शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी-BJP  की तैयारी का आगाज़ वाराणसी से कर दिया है।  इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी -INC अपनी नेशनल यूथ कांग्रेस की कमर कस रही है।बहुजन समाज पार्टी-BSP .औल  इंडिया तृणमूल कांग्रेस-TMC. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया-CPI और बाक़ी सभी पार्टियां इस वक़्त अपना केंद्रबिंदु युवाओं को रख कर चल रही है। 2019 के चुनावों में लगभग दस करोड़ ऐसे युवा हैं जो पहली बार अपना मतदान करेंगे।65% भारतीय जनसंख्या 35 साल से कम है।

जब भी कोई चुनव देश में आयोजित किए जाते हैं तो उनका दारोमदार देश के युवा पर होता है।

वह युवा होते हैं, जिन्हें चुनावों के समय किसी बड़े नेता से ज़्यादा सम्मान दिया जाता है।वह जिस भी पार्टी से जुड़ते   हैं, उस पार्टी की रैलियों में युवाओं के दम पर ही नेता का भाषण पास या फ़ेल माना जाता है। चुनावों के दौरान जितने भी छोटे या बड़े समारोह होते हैं ।उनमें पार्टी की झंडियां लगाने से लेकर अपने साथ लोगों का एक ऐसा सैलाब लाना जो किसी भी पार्टी की रैली को शानदार बनाता है ।यह सारे इंतज़ाम युवाओं के ही मज़बूत कंधे  पर पूरे  हैं।

इसलिए  युवाओं को पार्टी से जोड़ने का ये दौर बहुत ज़रूरी होता है। इस समय में यह  ख़ास ध्यान दिया जाता है कि सत्ता की ताक़त कुछ चंद नामों में न सिमट कर  युवाओं में एक लहर की तरह दौड़े। हर बड़े नेता के घर और दफ़्तर के दरवाज़े युवा नेता के लिए खोल दिए जाते हैं।

चुनावों का समय पार्टियों में बैठे उन बुद्धि जीवों की दिमाग़ी कसरत का होता है ,जो  अपनी पार्टी के लिए लोगों में एक जुनून के जैसी लहर उठाते हैं।अपनी पार्टि के ताक़त का केन्द्र खोल कर उसे एक बहता दरिया जैसा बना देते हैं और जैसे ही चुनाव समाप्त होते हैं दरिया को समेटकर लोटे में रख लेते हैं।

इस समय में इन युवाओं के दिमाग़ पर सत्ता की नेता शाही का एक ऐसा नशा चढ़ता है, जिससे वो पार्टी की राह पर ही चल पड़ते हैं। इसे मैं ग़लत नहीं मानती ,तब तक जब तक पार्टी इनका ध्यान रखती है। बहुत सारे लोगों से बात करके यह सामने आया कि यह युवा  एक ऐसा तबक़ा बन जाते है जो स्किल इंडिया और शिक्षित इंडिया के दायरे से निकल कर राजनीतिक इंडिया का हिस्सा बन जाते है। जिस युवक को चुनावों के दौरान नेता अक्सर फ़ोन किया करते हैं। आप नेताओं के भाषणों में जिस युवा के होने से ही देश की शक्ति का अनुमान लगता है ये बातें सुनते है।उस युवा को चुनावों के बाद से एक ऐसी बहती हवा में छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसको हवा  होने का एहसास तो होता है लेकिन किस तरफ़ जाना है ये यह समझ नहीं पाता है।

चुनावों की लहर में मिली एक उम्मीद को ज़िंदगी की दिशा मान कर  वह अपने बहुमल्य वर्ष एक नेता बनने की ख़्वाहिश में पार्टी के लिए देता है।युवाओं के लिए यह  शब्द नेता वह प्रेरणास्रोत है जिसका भाषण सुनने वह सालों पहले किसी के साथ आया था। उसके लिए नेता वह बन जाता है जो किसी अभिनेता से कम नहीं होता। ख़ुद को उस मुक़ाम पर देखने के लिए सालों का परिश्रम करता है। यहाँ पर मैं आपको यह बात बताना चाहूंगी कि जब भी कोई कार्यकर्ता किसी भी राजनतिक पार्टी से जुड़ता है और जितने भी साल वो उस पार्टी में रहता है उस कार्यकर्ता को किसी भी तरह से वित्तीय सहायता नहीं दी जाती। और ये ही वर्ष किसी की ज़िंदगी के वो वर्ष होते हैं जिसमें वह अपने दिमाग़  और ताक़त से कोई भी मुक़ाम हासिल कर सकता है। लेकिन चुनावों के दौरान दिखाया सपना, जिसमें बोला गया था कि देश को चलाने में हमें तुम्हारी ज़रूरत है आओ हम से जुड़ो और एक भारतीय होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों को समझो। देश भक्ति का एक ऐसा एहसास उस युवा में भर दिया जाता है जिससे उसकी आँखें और दिमाग़ दोनों भर जाते हैं। ये बात किसी एक पार्टी की नहीं  बल्कि सभी पार्टियों कि है।

इस बारे में मेरी बहुत सारे ऐसे युवाओं से बात हुई जो 25-तीस साल की उम्र में किसी पार्टी से जुड़े और उन्हें 10 साल से ज़्यादा लग गये यह समझने  में की राजनीति सबके बस की बात नहीं। यह केवल उन लोगों के लिए हैं जिनके पास धन का  आभाव नहीं। यह बात सच है।इस बात को मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि धन को पूरा करने के लिए की गई राजनीति शुरुआती दौर में एक व्यक्तित्व को खोखला करती है और उसके बाद देश को।

 ये बातें  मैं यूँही  नहीं लिख रही। इनके बारे में मेरी बहुत लोगों से बात हुई। बहुत सारे वो जिन्हें 20-25 साल लगे और फिर पार्टी द्वारा किसी ऐसे पद पर नियुक्त किये गये जिसकी तनख़्वाह से  घर परिवार और ख़ुद की जीविका को चलाना नाको चने चबाने के समान था। ।या फिर ऐसे लोग जो अपनी युवावस्था में पार्टी से जुड़े और उससे जुड़े रहने के लिए और अपने घर को भी चलाते रखने के लिए बहुत सारे वो काम करने लगे, जिसमें  पैसा तो आ गया लेकिन पैसा कमाने के उस ज़रिए ने एक ऐसे भ्रष्ट युवक को जन्म दिया जिसने देश के लिए कुछ कर गुज़रने के लिए एक पार्टी से ख़ुद को ज़रूर जोड़ा था लेकिन उस पार्टी का सही मार्गदर्शन नहीं होने के कारण उसने उसी देश को भ्रष्ट कर दिया। नेता होने के जुनून को पूरा करने में ज़िंदगी के इतने साल व्यर्थ हो गए कि जब नेता होने का सपना टूटा तो कहीं और जाने का रास्ता ना मिला।ऐसे बहुत सारे युवा है जो राजनीति की लहर में बह तो गए लेकिन  सँभल न पाए। सालों तक किसी राजनीतिक पार्टी के लिए अपनी निष्ठा दिखाने के लिए या तो अपने और अपने परिवार की आशाओं को नज़रअंदाज़ करते रहे। या पार्टी में बने रहने के लिए  वो शुद्ध सोच, साफ़ नीयत और महान भारत के सपने को रौंदते हुए उस ओर निकल गए जहाँ पर पैसे बनाने के लिए अपने ज़मीर को दाँव पर रखना पड़ा।

2019 के चुनावों में मैं यह उम्मीद करूँगी  कि युवाओं का साथ तो ज़रूर लिया जाए। लेकिन इस बात का भी ध्यान हर एक पार्टी रखे की मौक़े की राजनीति और मौक़े का साथ देश के पतन का कारण बनता है।

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