इसे छोड़गा । सिर्फ़ खिलाड़ी ही नहीं धर्मशाला का यह क्रिकेट का मैदान इतना ख़ूबसूरत बना है के पर्यटन की दृष्टि से भी यह देश को एक अलग ऊर्जा दे रहा है।हिमाचल प्रदेश के लिए यह एक अतुलय बात है।यह सारी बातें आपको इसलिए बतायी जा रही है कि खेल जगत को चार चाँद लगाने वाले ये राजनीतिक सुरमा अनुराग ठाकुर हमारे ही प्रदेश के हैं। इतनी क्षमता के बावजूद अब इस सब में ये समझना मुश्किल है की उन्होंने अब तक अपना जादू हमारे राष्ट्र खेल के ऊपर क्यूँ नहीं चलाया? जो ऊर्जा क्रिकेट विश्व कप या फ़ीफ़ा विश्व कप के समय ख़ासकर नौ जवानों मैं नज़र आती हैं उसकी तुलना करना तो दूर की बात , हमारे प्रदेश में अपने ही राष्ट्रीय खेल को लेकर निराशा इस क़दर है कि लोगों को न तो उसके शुरू होने का अंदाज़ा है और न ही अपने खिलाड़ियों का नाम पता है। यह स्थिति दयनीय है। देश के धनी तबके ने अपने राष्ट्रीय खेल पर ही नज़र डालना बंद कर दिया है।कई बुद्धि जीवियों का ये मानना है कि अगर यह धनी तबका हॉकी पर भी ध्यान दें तो ना सर्फ़ इसके खिलाड़ी बेहतर खेल पाएंगे बल्कि नौजवान पीढ़ी में भी हॉकी को लेकर एक नई उमंग उमड़ेगी। हॉकी के लिए बात केवल एक ख़ूबसूरत मकान में नए पर्दें लगाने की और रंग रोगन करवाने की हैं। अगर देश के राजनेता और धनी तबक़ा चाहे तो हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी को उसी ऊँचाई पर लाकर पहुँचा सकते हैं जिस पर देश में क्रिकेट का खेल है । अगर ऐसा हो जाए तो हॉकी के खिलाड़ी भी बेपरवाह होकर और अपनी जीविका चलाने की चिंता छोड़कर अपने खेल को चमकाने पर ही ध्यान देंगे। 1975 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ खेलते हुए 2-1 से भारत ने अपना पहला हॉकी में विश्व ख़िताब जीता था। किसी भी खेल को देश भक्ति का ज़रिया बना कर भारत देश में मुनाफ़ा कमाने का कारोबार बढ़ता जा रहा है।इसमें कोई ग़लत बात भी नहीं है आख़िर पैसा ही पैसे को खींचता है। मनोरंजन और व्यापार जगत की बड़ी -बड़ी हस्तियों ने क्रिकेट की कई टीमें ख़रीद ली है। न सिर्फ़ इन टीमों के खिलाड़ियों को ख़रीदने के लिए बेतहाशा पैसा ख़र्च किया जाता है। परन्तु इनके विज्ञापनों को बार -बार हर TV चैनल पर चलाकर लोगों के दिमाग़ में इन खेलों के शुरू होने की तिथि को दर्ज कर दिया जाता है।वह अमीर लोग जिन्होंने ये टीमें ख़रीदी है उनका समय उनके पैसों के हिसाब से चलता है। लेकिन वह समय निकाल कर क्रिकेट की टीमों के लिए बकायदा गाने बनाते हैं जिसमें वह ख़ुद भी दिखाई देते हैं।देश के विख्यात गायक , वादन कार और वह लोग जिनका किसी भी चीज़ के साथ खड़े हो जाने मात्र से ही उस चीज़ का रुतबा अनेकों बार बढ़ जाता है ,वह क्रिकेट के साथ खड़े दिखाई देते है। ये सब यहाँ पर लिखने का मक़सद ये हैं की भारत देश के वो लोग जो क़ाबिल है मिट्टी को सोना कर देने में उनकी नज़र में हमारा राष्ट्रीय खेल मिटटी भी नहीं रह गया है।हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है अगर वो बड़े नाम जो क्रिकेट के साथ खड़े दिखाई देते हैं ,वह चाहे व्यापार जगत के हो ,मनोरंजन जगत के या खेल गत के हॉकी पर अपना पैसा और हुनर लगा दे तो इस खेल का स्तर उस पायदान पर आ जाएगा जो एक राष्ट्रीय खेल को किसी देश में मिलना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के शिलारू में हॉकी का स्टेडियम है। यह भारतीय खेल अधिकार कि अधिकरण में आता है।शिमला से 52 किलोमीटर की दूरी ,ये 8000 फ़ीट पर ये मैदान है। इस स्टेडियम को बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने अच्छा ख़ासा धन लगाया है। शिलारू स्टेडियम एशिया में कुछ सबसे ऊँचे हॉकी स्टेडियम की सूची में शामिल है। भारत के भूतपूर्व फ़ील्ड हॉकी खिलाड़ी चरणजीत सिंह हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी शिमला से शारीरिक शिक्षा के निदेशक रिटायर हुए। हिमाचल प्रदेश नशे से जंग लड़ रहा है । यह एक बहुत ही ख़तरनाक समय हैं जिसमें भविष्य को ख़तरा है।देवभूमि नाम से जाने जाने वाला यह क्षेत्र बहुत ही मेहनती लोगों का है।हिमाचल वासियों कि रोज़मर्रा के जीवन में ही बहुत कसरत हो जाती है। यह एक बहुत अच्छे खिलाड़ी बनने की क्षमता रखते है।हिमाचल वासियों में खेल जगत को लेकर प्रोत्साहन भरना और प्रदेश के भविष्य को सुरक्षित करना एक बेजोड़ उपाए हैं। खेल और खिलाड़ियों के प्रति नौजवान पीढ़ी में जिज्ञासा भरना प्रदेश के गतिशील नेताओं के हाथ में और देश के धन संपन्न और क़ामयाब लोगों के हाथ में है। अपने देश के नौ जवानों के दिलो में राष्ट्रीय खेल हॉकी को एक लहर की तरह बनाना अब राजनीतिक, मनोरंजन और व्यापार जगत को मिलकर हि करना होगा। Picture courtesy Indiatoday.in ,tribuneindia.com and malasianhockey.blogspot ]]>