, मेहरचंद महाजन -एक विशाल व्यक्तित्व

मेहरचंद महाजन -एक विशाल व्यक्तित्व

Big Guns

  धौलाधार की पहाड़ियों की तरह चमकदार और ऊँचा है। यह हिमाचल का सौभाग्य है कि ऐसी शख़्सियत हम हिमाचल वासियों में से एक थी। ऐसे व्यक्तित्व के बारे में जानना हर हिमाचल वासी का सौभाग्य है।  भारत वर्ष में कोई ऐसी शख़्सियत नहीं जिसके जीवन के अनुभव इतने भिन्न रहे हो।यह भारत के ३  मुख्य न्यायाधीश भी रहे  और जम्मू और कश्मीर के  पहले (1947-48)   मुख्यमंत्री भी । इनके नाम पर भारतीय सरकार ने एक संमृणिय  डाक टिकट भी निकाला है। इतना ही नहीं भारत में शिक्षा के क्षेत्र में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्होंने जम्मू और कश्मीर के भारत में परिग्रहण में मुख्य भूमिका निभाई थी।मेहरचंद महाजन का जीवन भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण पाठ है ।वह भारत के इतिहास के एक ऐसे पात्र है, जिनकी  व्याख्या के बिना भारतीय इतिहास में कुछ पन्ने कम हो जाएंगे। इन्होंने अपने जीवन काल में बहुत महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया उसमें से एक रेडक्लिफ कमीशन की सदस्यता भी थी। इनका जन्म 23 दिसंबर 1889 को टिका नगरोटा में एक बेहद ही अमीर साहूकार परिवार में हुआ था।इनके दादा का नाम छजू शाह और पिता का नाम  लाला बृजलाल था। इनके जन्म पर परिवार के पंडितों ने इन्हें पिता के लिए बदकिस्मत औलाद घोषित कर दिया था।उस वक़्त ऐसे हालात में नवजात को छोड़ दिया जाता था, पर भाग्य का खेल मेहरचंद महाजन को यूँ ही छोड़ देने वाला नहीं था।  एक ग़रीब राजपूत परिवार , जिसमें मैं एक जोड़ा अपने बेटे गोपालू के साथ रहता था, उस परिवार मे मेहरचंद महाजन को दे दिया गया। सात साल की उम्र तक बहुत ही प्यार से वह इसी परिवार में पले ।क़िस्मत के खेल और भाग्य की रेखाएं इस तरह  बन रही थी कि भारत वर्ष के होने वाले  तीसरे मुख्य न्यायाधीश और जम्मू और कश्मीर के पहले  मुख्यमंत्री जिनका जनम एक अमीर साहूकार परिवार में हुआ था उन्हें एक बेहद ही ग़रीब राजपूत ख़ानदान में इसलिये दे दिया गया क्योंकि पंडितों ने उन्हें उनके पिता के लिए बदकिस्मत बच्चा  कह  दिया था। सात साल की उम्र में उनकी क़िस्मत ने करवट ली। इस समय तक इनके पिता बाबू बृजलाल ने सनातन स्तर की पढ़ाई पूरी कर ली थी। अब वह मुख़्तार बन गये थे और निचली अदालत में एक वक़ील की हैसियत से काम कर रहे थे।वह अक्सर सोचा करते थे की क्या उनका छोटा बेटा सच मे बदकिस्मत है और उसकी शक्ल देखने से क्या  उनकी मौत हो जाएगी? लेकिन पंडितों में अंधविश्वास होने के कारण वह हिम्मत नहीं जुटा पाते थे कि अपने छोटे बेटे को घर ला सके।  फिर एक दिन अचानक उनके बड़े बेटे की मृत्यु हो गई। ऐसे में घर का अब एक ही पुत्र रह गया, जो मेहरचंद महाजन थे। लेकिन  पंडितों के कहने से वह पिता के लिए  बदकिस्मत थे, उनकी मौत का कारण बन सकता था। ऐसे हालात में एक पंडित ने कहा कि यह लड़का मेहरचंद बदकिस्मत नहीं है। ये बेहद ही चमकती  क़िस्मत वाला लड़का है।यह या तो  वक़ील बनेगा या नेता। अगर इसे घर  लाया जाएगा तो घर की क़िस्मत में चार चाँद लग जाएंगे।पिता  बेटे को घर  लेकर आने के लिए  मान गए। लेकिन डर कहीं अभी भी था, इसलिये वह बेटे को लेने ख़ुद नहीं गए।  अपने  छोटे भाई ,पत्नी और माँ को बेटे को लाने के लिए कहा। उन्होंने ख़ुद बेटे का चेहरा  नहीं देखने का फ़ैसला किया। तो इस तरह मेहरचंद महाजन अपने घर वापस आ गए। एक महान शख़्सियत कि ज़िंदगी की बहुत ही मुश्किल शुरुआत। घर आने के कुछ दिन बाद ही उन्हें नूरपुर अपने पिता के भरोसे मनद  नौकर के साथ पढ़ाई के लिए भेज दिया गया। वहाँ कुछ दिन अपने रिश्तेदारों के साथ रहकर  वह स्कूल के हॉस्टल में रहने लगे। मेहरचंद महाजन अब अपनी ज़िंदगी के  बारहवे  साल में थे । वह अपनी दादी के साथ रहा करते थे।इतने सालों से परिवार के क़रीब रहते हुए ना तो कोई अपशगुन हुआ था और न ही कोई ऐसी बात जिसके कारण पंडितों की बातों पर यक़ीन किया जा सकता।सब कुछ सही देखते हुए उनके पिता ने उनका चेहरा देखने की हिम्मत जुटायी। लेकिन उन्होंने अपने दम पर नहीं  बल्की पंडितों के पूजा पाठ  के दम पर यह फ़ैसला किया।एक अच्छि  तिथी निकालने के बाद ही उन्होंने मेहरचंद का चेहरा देखा। उसके कुछ दिन बाद मेहरचंद को पालमपुर में पढ़ने के लिए भेज दिया गया। इनका पहला विवाह 1910 में केसरी देवी के साथ हुआ। मेहरचंद महाजन भारत के विभाजन को अपनी आँखों से देखने वाले और इस विभाजन में अपने हाथों से बहुत सारे कार्य करने वाले इंसान थे। इस दौरान एक दिन जब मेहरचंद महाजन अपने रोज़मर्रा के कार्यों में उच्च ने  उच्च न्यायालयों मसरूफ़ थे, उन्हें कश्मीर की रानी का संदेश मिला। वह युवराज के साथ सेल्फी होटेल में  थीं और मेहरचंद से मिलना चाहती थी। महारानी ने  मेहर चंद से जो इस वक़्त लाहौर के उच्च न्यायालय में एक न्यायधीश थे ,इस्तीफ़ा देने का आग्रह किया और  कश्मीर के मुख्यमंत्री का पद संभाला ने को कहा। दिल्ली में सरदार पटेल से मिलने के बाद मेहरचंद ने कश्मीर के मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया। इस पद पर नियुक्त होने के बाद उन्होंने कश्मीर के भारत में पारी ग्रहण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।]]>

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