बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर पहले बेटियों को ढूंढ़कर तो लाओ

Hindi Himachal

  स्थिति है।  भारत में ऐसा दौर चल रहा है जिसमें  रक्षक हि भक्षक बन गये हैं। जब कही पर कोई एक बेटी ज़ख्म से कोहराती है। तो देश भर में दर्द की एक के  बाद एक कितनी ही परतें खुलती जाती है।जैसे डूबते के लिए तिनके का सहारा हो। जैसे ना जाने कितनी गुम चीख़ें बस एक आवाज़ खोज रही हो। हाल ही में हिमाचल के तीन ज़िले जो कि शिमला, मंडी, और सिरमौर हैं। इन्हें संघ सरकार द्वारा बेटी बचाओ  बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम में बेहद  अच्छा काम करने के लिए पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार के साथ खुशियां जुड़ी होती है। पर इस पुरस्कार ने बहुत सारी बेटियों की खुशियों को अनदेखा कर दिया है। या यूँ कहें कि बहुत सारी बेटियां इस बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ आन्दोलन में कक्षा में बैठी हुई, वह विद्यार्थी बन गई जो सबसे पीछे रह जाती है। जिस पर अध्यापक का ध्यान जाता ही नहीं।

उसकी पहचान बस  सरकारी रजिस्टर तक

हाल ही में सोलन ज़िले के धरमपुर में बिलकुल बाज़ार के साथ एक ग़ैर सरकारी संगठन को ऐसा परिवार मिला जिसमें एक 13 साल की बच्ची है जो कभी स्कूल नहीं गई। उसका आधार कार्ड है। उसका नाम राशन कार्ड में अंकित है। पंचायत के रजिस्टर मे उसका नाम लिखा गया हैं ।लेकिन वो सालों से स्कूल क्यों नहीं आ रही  ,ये कभी किसी भी स्कूल मास्टर में जानने की कोशिश नहीं की। इस ग़ैर सरकारी संगठन ने जब सारी पूछताछ की और पता चलाया कि13 साल की बेटी  बस यूँ ही सरकारी रजिस्टरों में खो गई है। तो उन्होंने इस बच्ची का स्कूल में दाख़िला करवाया। यह 13 साल की बच्ची क्योंकि कभी स्कूल नहीं गई इसलिए  इससे पहली कक्षा से अपना सफ़र शुरू करना होगा। ये सिर्फ़ एक क़िस्सा है ऐसी ना जाने प्रदेश भर में कितनी बेटियां का, जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शोर में कही खो गई है। धर्मपुर राष्ट्रीय मार्ग 5-सात स्थित हैं। इस बच्ची का घर सड़क से कुछ ही मीटर दूर है। हर जगह के सरकारी स्कूल को यह ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है कि उस जगह में जितने भी बच्चे पैदा हो उनका नाम एक रजिस्टर पर लिखा जाए। ये नाम सिर्फ़ उस रजिस्टर के पन्ने काले करने के लिए नहीं लिखे जाते।यह इसलिए लिखे जाते हैं कि स्कूलों में कितने बच्चे आ रहे हैं?  यह स्कूल का रजिस्टर प्रधान अध्यापक के लिए एक रिकॉर्ड का काम करता है। इस से प्रधान अध्यापक को यह पता रहता है की उनके क्षेत्र के जितने भी बच्चे हैं वह स्कूल में मुफ़्त शिक्षा का फ़ायदा उठा रहे हैं या नहीं। प्रदेश में आलम ये है कि न जाने कितने नाबालिग बच्चे लोगों के घरों में सहायक की तरह काम कर रहे हैं। इन बच्चों को यह कहकर सरलता से घर में रख लिया जाता है यह स्कूल जाते हैं। घर के पास के ही किसी सरकारी स्कूल में उनका दाख़िला करवा दिया जाता है।  ऐसे बचे कितना स्कूल जाते हैं और कितनी पढ़ाई इन्हें करने दी जाती है इसके बारे में कोई सवाल नहीं पूछता।

सरकार की अनदेखी

हिमाचल में राष्ट्रीय मार्ग पाँच के साथ जितनी दुकाने और  ढाबे हैं इनमें अगर ज़्यादा नहीं तो कम से कम 7-10% छोटी बच्चे/ नाबालिग सहायक के तौर पर काम कर रहे।  इत्तेफ़ाक़ की बात है कि राष्ट्रीय मार्ग पाँच से हर दिन ना जाने कितने ही वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और सरकार के नेता गुज़रते हैं। मुमकिन है वो दुकानों  से कभी समान भी ख़रीदते ही होंगे और किसी ढाबे पर रुककर चाय या खाना भी खाते होंगे। क्या ये सवाल पूछना ग़लत होगा कि ये  होते देखना, आपका चुप रहना। आपकी लापरवाही माने या आपका साथ?]]>
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *