आज इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आप सबसे एक अपील करना चाहती हूँ। हिमाचल प्रदेश की जितनी भी ग़ैर सरकारी संस्थाएं हैं, ख़ास तौर पर नूरपुर और उसके आस पास की संस्थाएं।आप सब अपनी -अपनी डायरियों में आने वाले छं महीनों की नौ तारीख़ को रिज़र्व कर लें।9 अप्रैल 2018 को चम्बा -नूरपुर मार्ग पर, मलकवाल गाँव के पास एक ऐसी सड़क दुर्घटना हुई ,जिसमें कई गांवों की आस भुज गई| इस दुर्घटना में 20 से ज़्यादा स्कूली बच्चे ,जो पहली से दसवीं कक्षा के बीच पढ़ रहे थे, नहीं रहे। इन सभी के घर ज़्यादा से ज़्यादा सौ मीटर के दायरे में है। ये फ़ासला न किलोमीटर में कुछ बनता है और न हि दिलों में। इससे आप यह अंदाज़ा लगाइए कि यह दुख किसी एक घर का ना होकर , कई गांवों का माहौल बन गया है।हादसा एक दिन होता है पर उसका पक्षीय प्रभाव(side effect) ज़िंदगी भर के लिए रह जाता है।
कहते हैं कि दुःख में हि अपनों का पता चलता है। इस दुखद घटना से सारे देश भर में शोक़ का माहौल बन गया था। पूरा देश एक जुट उन परिवारों के साथ खड़ा था। सभी राजनीतिक पार्टियां सियासत छोड़ के इस दुख के वक़्त में इन परिवारों के साथ एकजुट खड़ी थी।वैसे तो ये कहा जाता है कि जिस तन लागे वह ही जाने। लेकिन मुश्किल के समय में जब चार लोग आपसे मिलने आ जाते है, कुछ बातें कर लेते है,तो समय निकल जाता है।यक़ीन मानिए ऐसे मुश्किल के समय में लगता है कि घड़ी की सुई रुक गई है ,दिन बीतते हि नहीं है।
इस दुर्घटना को में महाविनाश कहूंगी। सिर्फ़ सौ मीटर के दायरे में एक साथ कई अर्थियां उठी।यह एक महा दुर्घटना है। इसे हमें बहुत संवेदना के साथ संभालना होगा।यहाँ हादसा एक परिवार में नहीं हुआ है,अगर ऐसा होता तो बाक़ी सब मिलकर उस परिवार को संभाल लेते। गाँव भर में एक दूसरे को संभालने के लिए कांधों की कमी पड़ गई है।
दादी -नानी आज भी उन बच्चों की किताब और कॉपियां अपने सीने से लगाए बैठी है। किसी की माँ के आँसू थमते ही नहीं है, और कोई पत्थर हो गई है।पिता की व्यग्रता छुपाएँ नहीं छुप रही है। ऐसे नाज़ुक वक़्त में अपने चुने हुए नेता का अपने साथ खड़ा देखना इंसानियत पर आपका विश्वास बढ़ा देता है। ज़िंदगी केवल सियासत और राजनीति नहीं है यह बताता है। नूरपुर के एम. एल . ऐ .राकेश पठानिया का साथ और काम इस हादसे में घायल हुए दिलों के लिए काबिलेतारीफ रहा है।व्यक्तिगत रूप से भी और सरकार का माध्यम होने की भी पूरी ज़िम्मेदारी निभाते हुए, यह इन परिवारों के स्तम्भ बने हैं । इस लेख के माध्यम से मैं उनसे एक आग्रह और करूँगी की टांडा मेडिकल कॉलेज या जहाँ से भी उपलब्ध हो पाए, एक मनोचिकित्सक को सभी परिवारों से पाँच -छह महीने तक लगभग हर रोज़ मिलने और उनकी दिक्कतों को समझने के लिए नियुक्त करेँ।
सरकार ने हर तरह से इस बेहद दुखद वक़्त में लोगों के साथ खड़े होकर अपने कर्तव्य का पालन किया है। अब सब कुछ सरकार पर न छोड़ते हुए हर आम और ख़ास व्यक्ति का ये कर्तव्य बनता है कि वो भी अपना दायित्व निभाएँ।
यह हादसा एक बहुत बड़ा मानसिक घाव है उस पूरे क्षेत्र के लिए। हिमाचल सबसे ज़्यादा ग़ैर सरकारी संस्थाओं के लिए जाना जाता है। ये एक मौक़ा है अपने निर्माण का अस्तित्व बचाने का।मैं आप सभी संस्थाओं से आग्रह करती हूँ की बारी बारी इन गांवों में जाएँ और लोगों से बातें करें। इनके घाव ज़िंदगी भर दर्द करेंगे लेकिन अगर इस वक़्त में आप इनके बँधे बँधाये काम में अगर कुछ नयापन लादेंगे, तो इन परिवारों को ज़िंदगी जीने का एक सहारा मिल जाएगा । बहुत सारी ज़िंदगीयॉ असमय इन गाँव से चली गई ,लेकिन अब ये समझिए कि ये वो माँ बाप है,जो आज नई ज़िंदगियों को सहारा देने के लिए खड़े हो जाएंगे। इस समय में अगर आप इनको एक जज़्बा और एक नया रास्ता दे सके तो वो इनके दुखों को बहुत कम कर देगा।
मैं आपको सिर्फ़ एक सुझाव दे रही हूँ ,यहाँ बच्चों के नाम पर रक्तदान शिविर लगा सकते हैं । बच्चों के नाम से एक ऐसा स्मारक बन जाए ,जो उनके माँ बाप को हर रोज़ उनके घर से बाहर ले आए।जिस भी भाव से जिस भी रूप से इन परिवारों के साथ खड़े हो सके ज़रूर खड़े हो। मानसिक दृष्टि से इन्हें ख़ुद को संभाल पाने के लिए भी अभी बहुत वक़्त लगेगा। जितना हो सके इन गांवों में जाइए।
इस हादसे के बारे में मेरी सोहन चंदेल जो साइकोलॉजी में विद्यावाचस्पति (पी एच डि) है, से बात हुई।इन्होंने इन गांवों का दौरा किया।सभी परिवारों से मिले, उनकी मुश्किलों को समझा है।जो भी ग़ैर सरकारी संस्थाए इस गाँव में जाना चाहती है और एक मानसिक सलाहकार की सलाह से बेहतर काम करना चाहती है वो सोहन चंदेल को फ़ोन कर सकते हैं। इनका नंबर 9915344327 है।
इंसानियत दिल में होती है ,हैसियत में नहीं
ऊपर वाला क्रम देखता है ,वसीयत नहीं।
Excellent gesture beta ji. Heart touching. Keep it up.
Thank you Sir.It is difficult to pool in people for lives left till they are lost.
Shalini