, दौलत राम सांख्यान

दौलत राम सांख्यान

Himachal political history Hindi Himachal

हिमाचल के घने जंगलों और ऊँची पहाड़ियों में गहरे राज़ है।वो बाते हैं, जिन्हें सुनकर और जिनके बारे में बात करके अच्छा लगता है।सदियों पहले अपने देश, अपनी जगह के लिए खड़े हुए स्वतंत्रता सेनानी जो हमारे राज्य हिमाचल की शान है । मैं आपको उनके बारे में बताऊँगी। ये ब्लॉग उनकी कहानिया आप तक पहुँचायेगा। आज की कहानी,बिलसपुर कि जानी मानी शख़्सियत दौलत राम सांख्यान कि ।इनका जन्म 17 दिसंबर  1919 में गाँव ,पानजतन, तहसील परँगणा बहादुरपुर -बिलासपर  में हुआ। यह एक बहुत ही दौलतमंद परिवार का पहले लड़के थे।उस वक़्त बिलासपुर अपने आप में एक राज्य था । उस राज्य के सबसे बड़े व्यावसायिक घराने के यह बेटे थे।जब यह नौवीं कक्षा में थे,इनके पिताजी बीमार हो गए। व्यवसाय को संभालने के लिए ज़बरन इनका स्कूल छुड़वा दिया गया।  इनके परिवार में दो छोटे भाई और दो छोटी बहनें भी थी। उस वक़्त इनके परिवार की सालाना कमाई तक़रीबन दो लाख रुपये थी। इनका पारिवारिक व्यवसाय घसू  मल लखु  राम  के नाम से चला करता था।

1930-1931 बिलासपुर में दादरा विरोध हुआ। इसमें किसानों ने राजा से अपनी ज़मीनों का समझौता करने की माँग की। राजा ने इस विरोध को रोकने के लिए वहाँ पर लाठीचार्ज करवा दिया। इस लाठीचार्ज ने उस विरोध में ऐसा भयानक रूप लिया कि एक व्यक्ति  को फ़रीदकोट जेल में बंद कर दिया । दौलत राम सांखयान के जीवन में इस स्वतंत्रता सेनानी की बहुत इज़्ज़त थी।इस बात से उन्हें गहरा सदमा लगा।

1935 में उदयपुर में इन्होंने कांग्रेस पार्टी में अपना नाम लिखवा लिया। यह बात बिलासपुर के राजा को बिलकुल पसंद नहीं आयी।इसके बाद दौलतराम और उनके गाँव निवासियों ने राजा से औद्योगिक  इकाई लगाने के लिए दान माँगा। राजा ने दान के लिए तो स्वीकृति दे दि मगर यह शर्त रख दी इस पैसे से गाँव में बैंक खुलेगा। यह शर्त दौलत राम को पसंद नहीं आयी क्योंकि औद्योगिक इकाई से कई लोगों के घर का चूल्हा जलता लेकिन बैंक में तो सिर्फ़ पढ़े लिखे ही लग सकते थे। उन्होंने इसके ख़िलाफ़ रोष प्रकट किया और राजा ने नाराज़ होकर दौलतराम सांख्यान को देश निकला दे दिया।। अब दौलतराम सांख्यान ने सियासत के राजाओं से आज़ादी के लिए अपनी मुहिम बिलासपुर के सीमाओं से बाहर से शुरू कर दी।देश निकला का असर नाहीं संख्यान पर और न ही उनके परिवार पर पड़ा देखकर राजा ने अपने क्रूरता की तलवार की धार थोड़ी और पैनी करी। उसने अब दौलत राम के परिवार को बेघर कर दिया। उनके घर पर ताला लगा दिया और उसकी चाबी  गाँव के खडकु राम नंबरदार को दे दी गई। अपने ही घर से उनके भरे पूरे परिवार को प्रतिदिन कुछ मुट्ठी चावल और कुछ मुट्ठी दाल दिया जाता था।

सांख्यान का परिवार उनके रिश्तेदार मठिया राम के साथ रहने लगा।घर से बेघर हो जाने पर और अपने ही घर से मुट्ठीभर राशन मिलने पर भी उनके परिवार ने कोई आपत्ति नहीं जतायी ना तो राजा के पैर ही पकड़े और न ही अपनी हिम्मत तोड़ी। जब राजा ने अपना यह बान भी ख़ाली जाते देखा तो उसने मठिया राम से पूछना शुरू किया कि दौलत राम साख यान कहाँ है? मठिया राम के ना बताने पर उसके हाथों में सरिये डालकर हथोड़े मार मार कर उसकी उंगलियां तोड़ दी गई।इस हादसे के कई महीनों बाद तक मठिया राम अपने हाथ से खाना तक नहीं खा सके थे।

इसी दौरान  पद्म देव  अपने क्रांतिकारी दोस्तों के साथ नमहोल आए।वहाँ पर एक परस राम जेलदार था।उसने इन सभी की पिटाई करी ।इनसे एक घड़ी और  60 रुपये भी छीन लिए। इस अपमानजनक कार्य पर राजा ने नाही परस राम की पीठ थपथपायी बल्कि उसे एक बंदूक  ईनाम दी।

12 अक्टूबर 1948 को बिलसपुर भारत में शामिल हो गया।इस बेहद ही ख़ुशी के मौक़े पर दौलतराम अपने गाँव अपने परिवार के साथ खुशियां मनाने बिलासपुर लौट रहे थे। बिलासपुर के राजा का ग़ुस्सा उस वक़्त भी उन पर ठंडा नहीं हुआ था ये कहा जाता है कि जब उन्होंने बिलासपुर की सीमा में क़दम रखा तो उन पर पत्थरों की बरसात करवाई गई। इसमें सांख्यान का एक दाँत भी टूट गया था।

लगभग पाँच दशक तक उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए अपनी निष्ठा निभाई। इसमें आठ सालों के लिए वह मंत्री भी रहे।

राजनेताओं की बढ़ती ताक़त और राजनीति को गंदा होते देख उन्हें बहुत दुःख होता था।यही कारण था कि उन्हें कभी अपने बच्चों से राजनीति में आने के लिए नहीं कहा। लेकिन अपने पिता की निष्ठा और उनके चेहरे पर लोगों के लिए कुछ कर सकने की मुस्कान देख कर उनके बच्चे,टिकेट के लिए आकांक्षी हैं और अपने पिता कि  सिखायी गयी निष्ठा से लोगों के लिए काम करने के लिए तैयार है।

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