क्या आप जानते हैं कि 1857 का विद्रोह ,जिसे भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई कहते हैं,वो हिमाचल प्रदेश के कसौली में भी शुरू हुई थी।यह कसौली से शुरू होकर जयोग तक पहुँची थी। वो दिन आज, 20 अप्रैल का ही था। आज इस बात को 161 वर्ष हो गए हैं।मुमकिन है बहुत सारे लोग इसे भूल गए हैं और बहुत सारे लोगों को यह ब्लॉग पढ़ कर लगेगा कि अच्छा ऐसा भी कुछ हुआ था क्या? ये वो वक़्त था जब भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। ये मैं इसलिए बता रही हूँ क्योंकि उस वक़्त इंग्लैंड का राज भारत पर सीधे तौर पर नहीं शुरू हुआ था।भारत में अंग्रेजों का ब्रिटिश मुकुट के नाम से शासन 1858 में शुरू हुआ था।
1857 का विद्रोह मेरठ में शुरू हो चुका था। इसकी वजह अंग्रेजों द्वारा कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी इस्तेमाल करना था। सैनिकों को यह कारतूस अपने दांतों से काट कर इस्तेमाल करने पड़ते थे। ये एक ख़ास तरीक़े की बंदूक जिससे इनफ़ील्ड रिचर्ड राइफ़ल कहा जाता था, उसमें इस्तेमाल किए जाते थे। आज ही के दिन 20 अप्रैल को अम्बाला कैंटोनमेंट के छः जवानों ने कसौली छेवनी में अंग्रेजों की बंदूकों की डिपों में आग लगा दी थी।कसौली में उस वक़्त नुसीरी रेजिमेंट(गुरखा रेजिमेंट) तैनात।कसौली अंग्रेज़ों के एक मज़बूत गढ़ के तौर पर जाना जाता था।
इस विद्रोह को कसौली में देखकर अंग्रेज़ घबरा गए। आनन फ़ानन में उन्होंने जिस भी भारतीय पर हल्का सा भी श़क पाया, उसे जेलों में बंद करना शुरू कर दिया ।इस बात से विद्रोह की चिंगारी को हवा मिली। विद्रोहियों में एकता और अंग्रेज़ों के प्रति उनकी नफ़रत बढ़ गई। इस विद्रोह की मशाल को दगशाई, सबाठु, कालका और जूतोंग के सैनिकों ने भी तेल दिया। हिमाचल में 18,57, भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई की चिंगारियां कांगड़ा ,धर्मशाला, नूरपुर और सिरमौर तक पहुँची।
कसौली में इस विद्रोह की ख़बर को सुनकर शिमला में एक ख़ौफ़ का माहौल हो गया।शिमला के मुख्य कमांडर जरनल जोर्ज एनसन ने जितनी भी सैनिकों की टुकड़ियां कसौली, जतोग , दगशाई और सबाठू में थी, उनको अम्बाला जाने के आदेश दे दिये। गुरखा पल्टन ने यह आदेश मानने से मना कर दिया। सैनिकों का ये विद्रोह देखकर शिमला में 800 अंग्रेज़ी लोगों में(अंग्रेज़ी परिवार) दहशत फैल गई।वो एक सुरक्षित स्थान खोजने लगे।। शिमला के डिप्टी कमिश्नर ‘लार्ड विलियम हे’ ने सभी अंग्रेज़ मर्दों को बंदूकें दे दी। हालाँकि अगले ही दिन इन्हीं के आदेशानुसार ये बंदूकें वापिस भी ले ली गई और इनको प्राणों की रक्षा के लिए शिमला छोड़कर जाने को कहा ।
कसौली में अंग्रेज़ों का सरकारी कोष भी था।।अंग्रेज़ों ने इस ख़ज़ाने पर ख़तरा देखते हुए इसे बचाने की कोशिश की। इसे छुपाने की जगह के तौर पर एक यूरोपयन बैरक को चुना गया। अभी केवल 26,000 रुपये ही निकाले थे कि एक अंग्रेज़ अफ़सर गुरुखो की एक टुकड़ी से उलझ पड़ा। अब नुसिरी बटालियन ने अपना आपा खो दिया और हमला बोल दिया। उन्होंने ये 26,000 रुपया छीन लिए और वहाँ से चले गए।
ऐसा कहा जाता है कि बाक़ी की रक़म बचाने के लिए, दो अंग्रेज़ी अफ़सरों ने बचें रुपया को कसौली के चर्च परिसर में एक पेड़ के नीचे दबा दिया था। यह रक़म 20,000 रुपया की बतायी जाती है।बाद में इस रक़म को अंग्रेजों ने भी ढूंढा और उसके बाद भारतीयों ने भी लेकिन आज तक वह रक़म किसी को नहीं मिली। इस रक़म को ढूंढने के लिए अंग्रेजों ने इतनी खुदाई करवाई कि जो पेड़ था उससे भी वहाँ से हटाना पड़ा।ये रक़म का न मिलना एक रहस्य बनकर रह गया है।
क्रान्तिकारी कसौली से जत्थों तक गए। रास्ते में उन्होंने अंग्रेज़ों की रिहायशी सम्पत्ति को जला दिया। इन क्रांतिकारियों को स्थाई पुलिस का भी समर्थन मिला। हालाँकि पुलिस को दबाने में अंग्रेज़ काफ़ी हद तक क़ामयाब हो गए थे। इस वाक्य में दरोग़ा बुद्ध सिंह का नाम ख़ास तौर पर लिया जाता है। इन्होंने अंग्रेजों के हाथ आकर दम तोड़ने से बेहतर ख़ुद को गोली मार कर शहीदी दि।
यह भारतीय आज़ादी की पहली लड़ाई थी।कसौली में इसके समर्थन में किए गए विद्रोह ने अंग्रेज़ों की कई महीनों तक नींदें उड़ा दी थी। अंग्रेज़ी औरतों और बच्चों को सनावर के महिला हॉस्टल(यह आज का सेन्ट लॉरेंस स्कूल है) में रखा गया और अंग्रेज़ी मरद हफ्तों तक बिना सोए उसका पहरा करते रहे।
24 मई को नसूरी बटालियन ने एक खुफिया मुलाक़ात कर आगे क्या करना है उस पर सोच विचार किया। परंतु दिल्ली और अम्बाला से क्रांतिकारियों का समर्थन न मिलने के कारण वो कमज़ोर पड़ गए थे। सेरी के रास्ते में उन्हें अंग्रेज़ों ने गिरफ़्तार कर लिया और अम्बाला ही जेल में बंद कर दिया।
20 अप्रैल का दिन है। आज हमारा ये फ़र्ज़ बनता है कि जिन लोगों ने भारतीय आज़ादी की पहली लड़ाई में हिमाचल के योगदान को आगे रखा उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे।