उम्मीद का दिया सोशल डिस्टेंसग के साथ

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शालिनी चंडीगढ़

नमस्कार।
पाँच अप्रैल है आज ।लॉकडाउन चल रहा है ।
वैसे तो लॉकडाउन का मतलब सब कुछ थम जाना है। पर इस लॉकडाउन में ज़िंदगी की जीत हो रही है।जितने लोगों से बन पा रहा है| वह सभी अपने घर में है। कुछ ऐसे लोग भी है जो हर रोज़ अपने घरों से निकलते हैं ।उन लोगों की मदद देने के लिए जो अपने घरों में इस लॉकडाउन को क़ामयाब बनाने के लिए रुके हैं।
2020 का पाँच अप्रैल ख़ास है क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री ने आवाहन किया है कि आज रात 9 बजे ,नौ मिनट के लिए पूरा देश अपने घरों की बत्तियों को बुझा दें ।एक दिया ,एक मोमबत्ती ,टॉर्च ,अपने मोबाइल की रोशनी जो भी आसानी से कर सके उसे ज़रूर जलाए।
कुछ लोग इसके साथ है| कुछ लोगों को इससे आपत्ति भी है।
मुझे व्यक्तिगत रूप से इस चीज़ से कोई आपत्ति नहीं है। आपत्ति इसलिए नहीं है क्योंकि इसमें किसी का नुक़सान नहीं है।ऐसे मुश्किल वक़्त में जिसमें सिर्फ़ एक देश ही अपने देशवासियों को बचाने के लिए जूझ नहीं रहा है। बल्कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस से अपने -अपने देशवासियों को बचाने के लिए लड़ रही है।उसमें अगर किसी भी चीज़ मे हमें कोई रोशनी नज़र आती है ।तो उसकी तरफ़ जाने में मैं कुछ ग़लत नहीं समझती।
अगर हम अपने- अपने परिवार की बात करें तो अगर कुछ ग़लत होता है। कुछ नुक़सानदायक होता है ।तो जो भी हम से बन पड़ता है ।जैसे भी हमसे बन पड़ता है| हम सारी चीज़ें करते हैं।

लेकिन शायद वो हमारे घरों की चार दीवारों के अंदर होती है।किसी को पता नहीं चलती है
।इसलिए किए गए काम को नाप -तोल कर ठोक -बजाकर हमारे इलावा और कोई देखने वाला नहीं होता ।लेकिन यहाँ पे तो हमारे देश के प्रधानमंत्री ने ये बात कही है।
देखिए हर आम- ख़ास ,छोटे- बड़े ,तजुर्बेकार और बिना तजुर्बे के भी इस बात पर टिप्पणी करने से ख़ुद को रोक नहीं पा रहे है।
आपके दिए जलाने से ,मोमबत्ती जलाने से ,टॉर्च जलाने से यक़ीन मानिए किसी का भी कुछ नुक़सान नहीं होने वाला है।जिस चीज़ से किसी का नुक़सान नहीं होना है उसको 1 उम्मीद के साथ एक विश्वास के साथ कर लेने में क्या ग़लत है?
क्योंकि ये बात देश के प्रधानमंत्री ने बोली है ।इसलिए इसे 1 राजनीतिक जामा पहनाकर एक अलग तरीक़े से पेश करना सही नहीं है।
अगर आप इसे किसी राजनीतिक दल से जोड़ेंगे तो उससे जुड़ी आपकी विचारधारा इस बात को रंग देने के लिए ज़रूर मजबूर हो जाएगी।
मैं तो सिर्फ़ यही कहूंगी कि हस्पताल किसी को भी पसंद नहीं होता है ।लेकिन अगर किसी बीमारी के रहते हमको हस्पताल जाना पड़े। तो हम बिना प्रश्न पूछे बिना कोई श़क किए डॉक्टर जो इकलौता एक इंसान है ,जो उस वक़्त हमें ज़िंदा रख सकता है ।हमें ठीक रख सकता है ।बिना हमें जाने भी अपनी पूरी कोशिश करेगा हमारी ज़िंदगी बचाने की ,हम उस आदमी की बात को मानते हैं। क्योंकि ये विश्वास होता है कि वो कुछ बुरा नहीं करेगा हमारे लिए।
किसी ऐसे विश्वास को ताक़त देना जो ये मान रहा है कि हम सब विपदा की घड़ी से निकल आएंगे।हम सब को ऐसे मुश्किल घड़ी में कोई ऐसी चीज़ करना जिससे किसी और को कोई नुक़सान नहीं है।उसमें बताइए क्यों कमियाँ ढूंढ रहे हैं?
देश दुनिया में कोरोना वायरस की दवाइयों की खोज की जा रही है ।हर देश करो ना वायरस की चपेट में आए अपने देश वासियों को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। तो किस बात के सवाल?
भारत की जनसंख्या हम सब जानते हैं ।भारत की चुनौतियां भी हम सब जानते हैं। इन चुनौतियों को जानने के बाद ये सोचना कि जो मुश्किल आयी है बस चुटकी बजाने से ठीक हो जाए, ये सही नहीं है।
अतीत में जब भी देखा जाएगा ।तो हमेशा हमें कुछ न कुछ ऐसा नज़र आएगा जो उस वक़्त कर सकते थे ।या जो हमें लगता है नहीं हुआ होता तो भविष्य अलग होता ।
पर समझने की चीज़ तो ये हैं ये समाधान आपको अतीत को देखकर नज़र आता है।वर्तमान में जब हम उस स्थिति से गुज़र रहे होते हैं । एक नई चुनौती का सामना कर रहे होते हैं ।उस वक़्त हमें उस से जूझने का कोई अनुभव नहीं होता। इस वक़्त जो पूरी दुनिया के हालात हैं उसे देखकर ये समझना कि स्थिति दर्दनाक और ख़तरनाक है, मुश्किल नहीं है।

मैं आपसे ये नहीं कहूंगी कि आप भी दिया जलाएँ। मैं भी उम्मीद कर दिया जलाऊँगी क्योंकि इसमें मेरे परिवार वालों ,मेरे पड़ोसियों ,शहर वालों और देश वालों को कोई नुक़सान नहीं है ।इसलिए मैं दिया ज़रूर जलाऊँगी।

अमेरिका जैसा क़ामयाब देश करोना वायरस के आगे घुटने टेक चुका है।वहाँ के लोगों से जब बात होती है। तो वो ये बात ज़रूर कहते हैं कि पता नहीं क्यों लॉकडाउन नहीं कर रहे?
उनका ये मानना है कि अमेरिका में भी लॉकडाउन की घोषणा हो जानी चाहिए। ये समझ की बात है कि देशवासियों को बचाने के लिए इस वक़्त लॉकडाउन से बड़ी और कोई दवाई उपलब्ध नहीं है।
आप कहेंगे कि ये सारी बातें मैं क्यों बता रही हूँ?
ये बातें इसलिए बता रही हूँ की बड़े -बड़े देश भारत जैसी जनसंख्या को नियंत्रित नहीं कर सकते। जो सुविधाएँ भारत में इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बाद उपलब्ध है वो मेरा मानना है कि कोई भी और देश इस तरह नहीं दे सकता है।
इस मुश्किल की घड़ी में अमेरिका ,इटली ,ब्रिटेन जैसे बड़े -बड़े देश जो सुविधाओं में हम से कहीं बहुत आगे हैं अपने घुटने टेक चुके हैं।
ज़िंदगी में बहुत कम मौक़े मिलते हैं ।बहुत कम इतना समय मिलता है । जो हमें उन चीज़ों की सराहना करने का मौक़ा दें ,जिन्हें हम अक्सर ये मान लेते हैं कि ये तो होना ही था ।ये तो मिलना ही था। उन चीज़ों को अपना अधिकार मान लेते हैं।
ये हमेशा याद रखे के अधिकार माँगने से पहले हमारा कर्तव्य आता है। किसी और के किए काम में ग़लतियां निकालना कमियां निकालना। उसे नीचा दिखाना ।ये दुनिया का सबसे आसान काम है ।जिसे जाने क्यों हमने अपना अधिकार मान लिया है।
कुछ क्षण, कुछ घड़ियाँ, कुछ दिन हमारी जीवन में ऐसे आते हैं ।जिसमें हमें ये सीखने का मौक़ा मिलता है ,कि हम किस तरह से अपने जीवन को उपयोगी कर सकते हैं ।ये वही क्षण है
सोशल डिस्टेंसग इस समय का सच है ।चीज़ें जिस तरह हो रही है| वही इस समय का सच है। मैं और आप अपना -अपना सहयोग दे सकते हैं ।उस चीज़ के ख़िलाफ़ जो दुनिया में फैलायी गई या आ गई ये बात बाद की बातें हैं ।लेकिन इस सहयोग से हम पहले ख़ुद को और फिर अपने बोहोत सारे जानने वालों और घर परिवार के लोगों को ज़िंदा रख सकते हैं

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