तरक़्क़ी की राह में इंसान को अपनी बेहद क़ीमती चीज़ों की क़ुर्बानी देनी पड़ती है । यह एक बहुत ही ज़रूरी रिवायत है। तरक़्क़ी ख़ुद में एक इतना क़ामयाब लफ़्ज़ है जिसका एहसास अपनी ज़िंदगी में हासिल करना किसी भी शख़्स, सरकार, देश, राज्य, प्रान्त या ज़िले के लिए आसान काम नहीं होता। भारत के ख़ूबसूरत राज्य हिमाचल प्रदेश में आज- कल तरक़्क़ी को हासिल करने का दौर चल रहा है। सबसे पहले हिमाचल मे बेहद ही बुनियादी ज़रूरत ,जो इस राज्य को भारत के अन्य राज्यों से जोड़ेगी उस पर काम किया जा रहा है।यह काम है इसकी सड़कों को बेहतर बनाने का। प्रदेश में सड़कें बनाने के लिए भूमि को अधिग्रहित करना अनिवार्य है। लेकिन भू अधिग्रहण क़ानून 2013 के अधीन ऐसी बहुत सारी बातें हैं जिन पर प्रदेश वासी सरकार के साथ एका नहीं रखते। “जिन की अनदेखी की गई है यह वह बातें हैं जो भाजपा सरकार के विजन डॉक्यूमेंट में लिखी थीं। लेकिन सरकार बनने के बाद उन्हें नज़र अंदाज़ कर दिया.इसमें पहली बात है ग्रामीण क्षेत्रों में भू अधिग्रहण फैक्टर वान के तहत करना था। यह साफ़ तौर पर भू अधिग्रहण क़ानून 2013 की अवहेलना है।हिमाचल सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में भू अधिग्रहण फेक्टर वान(बाज़ारी मूल्य से दोगुना )के तहत अधिग्रहण कर रही है। जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ,झारखंड वह बिहार जैसे भाजपा शासित राज्य फेक्टर दो (बाज़ारी मूल्य से चार गुना )के तहत ही ग्रामीण क्षेत्रों में भू अधिग्रहण कर रहे है,” ये जानकारी धर्मेन्द्र ठाकुर जो संयुक्त संघर्ष समिति के युवा विंग के अध्यक्ष है ,उन्होंने दीं। 2013 भू अधिग्रहण क़ानून हर उस छोटे कण को देख कर बनाया गया है,जो किसी भी प्रदेश की तरक़्क़ी के बीच आ सकता है।इसमें पुनर्स्थापना व पुनर्वास के संवैधानिक अधिकार का भी प्रावधान है।भू अधिग्रहण क़ानून 2013 के शेड्यूल दो में भूमिहीनों को भूमि, बेघरों को घर, बेरोजगारों को रोज़गार अथवा पाँच लाख की राशि का प्रावधान है।इसके अतिरिक्त ऐसे लोग जो की भूमि अथवा मकान आदि परिसंपत्तियों के मालिक नहीं है परंतु भूमि पर निर्भर किरायेदार, हस्तशिल्प या कामगार व बर्तन दार के इलावा अन्य प्रकार से लाभार्थी है, उनके लिए भी क़ानून में पुनर्वास और पुनर्स्थापन की व्यवस्था है। “एक बेहद ही बड़ा संकट भू अधिग्रहण में उन मकानों पर बना है, जो चार लेन के लिए किए गए भू अधिग्रहण में तो नहीं आए लेकिन उसके बिलकुल पास है। ऐसे मकानों में भवनों का गिरना,उसमें दरारें आना और भुमी कटाव जैसे नुक़सान आम है। नैशनल हाईवे अथॉरिटी इन दोनों बातों में से किसी प्रकार की ज़िम्मेदारी से पूरी तरह पल्ला झाड़ रही है। यह एक बहुत बड़ा संकट है।हिमाचल प्रदेश एक प्रगतिशील प्रदेश है। इसमें अभी सड़कों का निर्माण बिना अंतराल के सालों तक चलता रहेगा।ऐसे में सड़क किनारे वो बहुत ही कम घर है जो दरारों से बच पाएंगे। सरकार को इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है,”धर्मेद्र ठाकुर ने इस बात पर ज़ोर दिया। हिमाचल प्रदेश पहाड़ी राज्य हैं।दुनिया में इसका नाम अपने ख़ूबसूरत पर्यावरण के लिए विख्यातहै।तरक़्क़ी की राह में नए रास्ते बनाना ज़रूरी है।परंतु इस काम के लिए मलबे में उड़ती धूल से पर्यावरण को अपूरणीय नुक़सान हो रहा है। असंख्य पेड़ तो काटे ही जा रहे हैं लेकिन इसके कारण नदी -नाले और जल स्रोत सूख रहे हैं। प्रदेश वासियों की खुशियां उनकी सुरक्षा और तरक़्क़ी इन तीनों चीज़ों का साथ होना ही प्रदेश के कौशल नेतृत्व की पहचान बन पाएंगी।]]>